अक्षय तृतीया (आखातीज ) का महत्व एवं कथा

Pooja Gupta| May 6, 2021, 10:58 a.m.

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अक्षय तृतीया (आखातीज )

अक्षय तृतीया या आखातीज का व्रत वैसाख सुदी तीज को किया जाता है।यह तिथि बहुत ही शुभ और पुण्यदायिनी मानी गई है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है ।

इस दिन प्रातःकाल मूँग और चावल की खिचड़ी बिना नमक डाले बनाई जाती है, पापड़ नहीं सेंका जाता और न ही पक्की रसोई बनाई जाती है। इस दिन नया घड़ा, पंखा, चावल, चीनी, घी, नमक, दाल, इमली, रुपया, इत्यादि श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दान किया जाता है | इस दिन श्री लक्ष्मीजी सहित भगवान नारायण की पूजा की जाती है।

पहले भगवान नारायण और लक्ष्मी जी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराना चाहिए, फिर उन्हें पुष्प और पुष्ण-माला अर्पित करनी चाहिए। श्रीलक्ष्मीनारायण भगवान की धूप, दीप से आरती उतारकर चंदन लगाना चाहिए। मिश्री और भीगे हुए चनो का भोग लगाना चाहिए। भगवान को तुलसी-दल और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए । इस दिन सभी को भगवत्‌-भजन करना चाहिए।

ब्राह्मणों को भोजन कराकर श्रद्धानुसार दक्षिणा भी दी जा सकती है । अक्षय तृतीया के दिन किया गया कोई भी कार्य व्यर्थ नहीं जाता और इस दिन किया हुआ कोइ भी दान का फल अक्षय होता है यानी जिसका नाश नहीं होता है, इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय तृतीया का व्रत भगवान लक्ष्मीनारायण को प्रसन्नता प्रदान करता है।

मान्यता है कि इस दिन खरीदे गए सामान की अक्षय बढ़ोत्तरी होती है, इसलिए लोग इस दिन सोने चांदी के बने आभूषणों और अन्य चीजों की खरीददारी भी करते हैं। वृंदावन में केवल आज के ही दिन बिहारीजी के पाँव के दर्शन होते हैं। किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए यह स्वयंसिद्ध दिन माना जाता है अर्थात इस दिन यदि कोई भी शुभ कार्य करना हो तो पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती ।

भगवान परशुराम जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था । ये भगवान श्री विष्णु के छठें अवतार हैं। इसीलिये इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाते हैं ।

अक्षय तृतीया को मां अन्नपूर्णा का जन्मदिवस भी मनाया जाता है। इस दिन जरूरतमंदों को भोजन कराने से मां अन्नपूर्णा प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं। इस दिन मां अन्नपूर्णा के पूजन से अन्न के भंडारे सदैव भरे रहते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत लिखना आरंभ किया था इसीलिये अक्षय तृतीया पर भगवद गीता का पाठ करना या सुनना शुभ माना जाता है।

अक्षय तृतीया या आखातीज ब्रत की कथा

अत्यन्त प्राचीनकाल की बात है। महोदय नामक एक वैश्य कुशावती नगरी में निवास करता था। सौभाग्यवश महोदय वैश्य को एक पंडित द्वारा अक्षय तृतीया के व्रत का विवरण प्राप्त हुआ। उसने भक्ति-भाव से विधिपुर्वक व्रत किया । व्रत के प्रताप से महोदय कुशावती का शक्तिशाली राजा बन गया । उसका राजकोश सदा ही स्वर्ण-मुद्राओं , हीरे -जवाहरातों से भरा रहता था । राजा स्वभाव से दानी भी था । वह उदार मन और खुले हाथों से दान देता था ।

एक बार राजा के वैभव और सुख- शांतिपूर्ण जीवन देखकर कुछ व्यक्तियों ने राजा से उनकी समृद्ध्धि का कारण पूछा। राजा ने अपने अक्षय तृतीया व्रत की कहानी सुनाई और कहा कि सब कुछ अक्षय तृतीया व्रत की क्र्पा ही है।

राजा से यह सुनकर उन जिज्ञासु पुरुषों और राजा की प्रजा ने नियम और विधान सहित अक्षय तृतीया व्रत रखना प्रारम्भ कर दिया। व्रत के पुण्य प्रभाव से सभी सब धन-धान्य से पूर्ण होकर वैभवशाली और सुखी हो गए। हे! अक्षय तीज माता जैसे आपने उ्स वैश्य को वैभव और राज्य दिया वैसे ही अपने सब भक्तों को धन व सुख प्रदान करना । सब पर अपनी कृपा बनाए रखना। हमारी आपसे ऐसी प्रार्थना है।

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